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दोनां कांनी / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
दोनां कानीं
फगत
चुप्पी ...
नजीक थोड़ा‘स
आंतरौ
बस बातां व्हैरी
निजरां सूं
देखूं
देखतो जाऊं।

</poem>
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