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म्हारी छात / नरेश मेहन

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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हारी छात
म्हां माथै
पड़ण नै त्यार है
छात रा लेवड़ा तो
कद रा
झड़ण नै त्यार है
म्हैं पण
उणी छात तळै रात भर सोया करूं।

म्हनै ठाह है
म्हारो देस ई नीं, पाड़ोसी देस भी
राखै परमाणूं बम्ब
जकां रा धमीड़
म्हनै ओढ़ा देस्सी
कदै ई अचाणचक धूळ रो खफ़ण

म्हैं
गांधी रै देस रो
सोमनाथ रै पंडां ज्यूं
सोऊं आखी रात
बेखटकै आ सोचतो थको कै
कदै ई इयां थोड़ी होया करै।
</poem>
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