भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जूण री रेल / नरेश मेहन

962 bytes added, 15:56, 12 जून 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश मेहन |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नरेश मेहन
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
म्हारो मन करै
नाता-रिस्ता
रेललाइन हो जावै
सगळा रिस्तेदार होवै
उण माथै चालण आळी
रेल रा डब्बा।

पछै सगळै टेसणां माथै
थमै बा रेल
उतरै-चढ़ै-भंवै
गळै मिलै
अर चाल पड़ै साथै
ईंया चलै बा रेल
सगळा ठाठ सूं खेलै
जूण रा खेल
पण उण रेल में
किणी लाटसाब सारू
आरक्षित नीं होवै
एक भी डब्बो।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits