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सावण / पृथ्वी परिहार

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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
हींडा
ऊबल्यां
भायल्यां
आई बातड़ल्यां में
हरख्यो मनड़ो
हरख्यो है सावण।

तीज-त्यूंआर, गणगोरां
भेजै में
घर सो है सावण।

कैर-खेजड़ी, रोहिड़ा
पत्यां-पानका में
सरस्यो है सावण।
जुवार-बाजरी, मोठां-मूंगा
दरात्यां में
पसरयो है सावण।

खेत-ढाणी, चौबारां
गाणींमाणीं
रातां में
बरस्यो है सावण।

</poem>
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