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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हारै पांती रो तावड़ो दियो
छींयां, आंध्यां अर बायरो भेज्यो
तपत अर दाब नै भी घाल दिया झोळी में
पण मेह नै भूलगी मा
कोसां न कोस रो पेंडो हाथ लियां
म्हे मोबी बेटा
मरू री मिरगतिसणा में अळूझ्या हिरण होया
म्हारै पांती री छांटां कठै भूलग्या बापू।

</poem>
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