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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पीळो पोमचो अर बिल्लू आभो
सैतूत रा मूंग पानका
गेंदै रा पुहुप राता
बेटी री भूरी आंख्यां
सुपना जेड़ो थाळ गुलाल
इतरा सारा पक्का रंग
जिणा माथै नीं चढ़ै
दूजो कोई रंग
अरथाऊ होंवती दुनिया में
रंगां रो कोई जोड़ नी
ओ ई ठीक है।
</poem>
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