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जमी गोळ / मनोज देपावत

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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हूं सोचूं
किंया मिळता
पाछा
बिछड़्योड़ा लोग
जै नीं होंवती
जीम गोळ।

</poem>
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