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|रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी
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इंसान को हर सिम्त से लाचार देखकर
हैराँ हूँ आज वक्त की रफ़्तार देखकर

माँ रो पड़ी ये सोचकर जाए वो किस तरफ
आँगन के बीच आ गयी दीवार देखकर

माली के हाथ में नहीं महफूज़ अब चमन
डाकू भले हैं, मुल्क की सरकार देखकर

दुनिया के सितम का तो खैर कोई ग़म नहीं
डर लग रहा है दोस्तों का प्यार देखकर

‘आनंद’ शाम तक तो बड़ा खुशमिजाज़ था
सहमा हुआ है आज का अख़बार देखकर
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