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|रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी
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हाल दिल का, वो इशारों से बता देता है
जब भी मिलता है, बहारों से मिला देता है

किस नज़र देखता है, हाय देखने भर से
मेरी नज़रों को नजारों से मिला देता है

जब भी आगोश में लेता है तो दरिया बनकर
प्यास को, गंगा की धारों से मिला देता है

जब कभी मुझको वो पाता है जरा भी तनहा
अपनी यादों के, सहारों से मिला देता है

कितना भी तेज़ हो तूफान वो मांझी बनकर
मेरी कश्ती को, किनारों से मिला देता है

हाँ ये सच है की खुदा, खुद नहीं करता कुछ भी
बस वो ‘आनंद’ को यारों से मिला देता है

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