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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
फिर वही दिन आ गये, फिर गुनगुनाना आ गया
जाते जाते लौटकर मौसम सुहाना आ गया

फिर किसी रुखसार की सुर्खी हवा में घुल गयी
फिर मुझे तनहाइयों में मुस्कराना आ गया

सबकी नजरों से छुपाकर उसने देखा फिर मुझे
फिर मेरे मदहोश होने का ज़माना आ गया

शोखियों की बात हो या सादगी की बात हो
हर अदा से अब उसे बिजली गिराना आ गया

जाने मेरे दोस्तों को क्या हुआ है आज कल
देखते ही मुझको कहते हैं, दिवाना आ गया

अब नही पढ़ पाइयेगा, उसकी रंगत देखकर
उस हसीं चेहरे को भी बातें छुपाना आ गया

मेरे दिलवर से मुझे भी कुछ हुनर ऐसा मिला
आग के दरिया से मुझको, पार जाना आ गया

जिंदगी ‘आनंद’ की, अब भी वही है दोस्तों
हाँ मगर उसको उसे जन्नत बनाना आ गया

</poem>
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