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मरने की फ़ुर्सत मुझे, मत देना भगवान्।
मुझे खोलने हैं कई ,अब भी रोशनदान।
 
नहीं बढ़ाना चाहता, परछाईं पर बोझ।
करता हूँ कम इसलिए, क़द अपना हर रोज़।।
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