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Kavita Kosh से
मैं तो बस इतना चाहता हूँ, मुझे समझ कर समिधा, मित्रो!
मन हो तो दे देना मेरी, कभी आहुति प्रेम हवन में।
हाँ में हाँ, बस, कहते रहिए।
मार दुखों की सहते रहिए।
आप ओढ़कर कफ़न पुराना,
पल-पल क्षण-क्षण दहते रहिए।
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