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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
नहीं लिख सकता
अब अपनी उदासी
ना ही कह सकता हूँ किसी से
खुलकर यह बात
कि अब न तुम हो
न वो सारी परेशानियाँ
जिनसे भरी रहती थी हमेशा
शर्ट की उपरी जेब
जरा सा झुकते ही टपक जाया करती थी
कोई न कोई शिकायत
लाख मन हो पर नहीं गा सकता
लड़कपन का कोई गीत
हो नहीं सकता वहाँ कभी भी
जहाँ जहाँ होना चाहता हूँ
पूछ नहीं सकता किसी से भी
दिल का राज़
दिखा नहीं सकता किसी को
अपना खोखलापन
आजकल इतना अकेला हूँ कि
नहीं महसूस कर सकता किसी को भी अपने आसपास
और इतना घिरा हूँ अपने आसपास से कि
तलाश रहा हूँ थोड़ा सा एकान्त
ताकि लिख सकूँ फिर से
एक प्रेम कविता
जिसे लिखते हुए रो पडूँ मैं
और पढ़ते हुए
मुस्करा पड़ो तुम !
</poem>
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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
नहीं लिख सकता
अब अपनी उदासी
ना ही कह सकता हूँ किसी से
खुलकर यह बात
कि अब न तुम हो
न वो सारी परेशानियाँ
जिनसे भरी रहती थी हमेशा
शर्ट की उपरी जेब
जरा सा झुकते ही टपक जाया करती थी
कोई न कोई शिकायत
लाख मन हो पर नहीं गा सकता
लड़कपन का कोई गीत
हो नहीं सकता वहाँ कभी भी
जहाँ जहाँ होना चाहता हूँ
पूछ नहीं सकता किसी से भी
दिल का राज़
दिखा नहीं सकता किसी को
अपना खोखलापन
आजकल इतना अकेला हूँ कि
नहीं महसूस कर सकता किसी को भी अपने आसपास
और इतना घिरा हूँ अपने आसपास से कि
तलाश रहा हूँ थोड़ा सा एकान्त
ताकि लिख सकूँ फिर से
एक प्रेम कविता
जिसे लिखते हुए रो पडूँ मैं
और पढ़ते हुए
मुस्करा पड़ो तुम !
</poem>