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|रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
}}
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<poem>
परम उपज है त्याग री
या फसल निराली यार
खर-पतवार कटे स्वारथ री
निरमल घणी हो पैदावार !!३१!!
प्रेम ना गली सांकड़ी
यो तो संदर घणो विशाल
निरमल ऊंडो जितरो जासी
पासी मोती, उतरा लाल !!३२!!
गलती हुवे मिनख सूँ
गलती माने बो महान है
गलती जो माफ़ करे निरमल
बो मिनख नहीं, भगवान है !!३३!!
देख दुखी, जो आँख ना रोवे
दीं देख भी, सुख स्यूं सोवे
निरमल अस्यी न आँख्यां होवे
जो होवे, बेगी आंधी होवे !!३४!!
छोरा-छोरी में करे भेद जो
निरमल, मिनख है बे नादान
बिन सीता, राम, श्री राम नीं होता
बिन राधा नीं, राधेश्याम !!३५!!
माँ प्रक्रति रो रूप सगुण
पिता ईसर रा अवतार
सरजण कर पालन करे
निरमल, दे चोखा संस्कार !!३६!!
सुणिया पे चाले, अकल रो आन्धो
बस देख्यां माने, मति रो आधो
सुणिया ने तोले, देख्यो भी मोले
उण ही ने, निरमल, ज्ञानी बोले !!३७!!
बहतो नीर, अर रन में वीर, ही काम रो
मेहनत में सीर, आफत में धीर, ही काम रो
अरजन रो तीर, कान्हे सो बीर, ही काम रो
रहे गंगा तीर, निरमल फ़कीर, ही काम रो !!३८!!
चाँद चमकते ने, जो ध्यावे
रात चान्दनी, ज्यां ने भावे
निरमल यूँ बाने समझावे
झूठी चमक चाँद री
साँची रात इन्धारी है प्यारा
चम्-चम् बे ही चमके है
जो खुद है चमकीला तारा !!३९!!
चाल डूंगरा स्यूं आवे
धरती री तिस बुझावण जळ
जिण रे मन भावे, वो ही खावे
दरखत दे, मिसरी सा फळ
निरमल, तूं कोरो इतरावे
कहे घणी, न करे अमल !!४०!!
</poem>
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<poem>
परम उपज है त्याग री
या फसल निराली यार
खर-पतवार कटे स्वारथ री
निरमल घणी हो पैदावार !!३१!!
प्रेम ना गली सांकड़ी
यो तो संदर घणो विशाल
निरमल ऊंडो जितरो जासी
पासी मोती, उतरा लाल !!३२!!
गलती हुवे मिनख सूँ
गलती माने बो महान है
गलती जो माफ़ करे निरमल
बो मिनख नहीं, भगवान है !!३३!!
देख दुखी, जो आँख ना रोवे
दीं देख भी, सुख स्यूं सोवे
निरमल अस्यी न आँख्यां होवे
जो होवे, बेगी आंधी होवे !!३४!!
छोरा-छोरी में करे भेद जो
निरमल, मिनख है बे नादान
बिन सीता, राम, श्री राम नीं होता
बिन राधा नीं, राधेश्याम !!३५!!
माँ प्रक्रति रो रूप सगुण
पिता ईसर रा अवतार
सरजण कर पालन करे
निरमल, दे चोखा संस्कार !!३६!!
सुणिया पे चाले, अकल रो आन्धो
बस देख्यां माने, मति रो आधो
सुणिया ने तोले, देख्यो भी मोले
उण ही ने, निरमल, ज्ञानी बोले !!३७!!
बहतो नीर, अर रन में वीर, ही काम रो
मेहनत में सीर, आफत में धीर, ही काम रो
अरजन रो तीर, कान्हे सो बीर, ही काम रो
रहे गंगा तीर, निरमल फ़कीर, ही काम रो !!३८!!
चाँद चमकते ने, जो ध्यावे
रात चान्दनी, ज्यां ने भावे
निरमल यूँ बाने समझावे
झूठी चमक चाँद री
साँची रात इन्धारी है प्यारा
चम्-चम् बे ही चमके है
जो खुद है चमकीला तारा !!३९!!
चाल डूंगरा स्यूं आवे
धरती री तिस बुझावण जळ
जिण रे मन भावे, वो ही खावे
दरखत दे, मिसरी सा फळ
निरमल, तूं कोरो इतरावे
कहे घणी, न करे अमल !!४०!!
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