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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
धंसियोडी आंख्यां, पिचक्यो पेट
पगां उबाणा, तपती जेठ
गाबो नीं तन पे
कीं भाव नीं मन में
न हंसे कदी
ना रोवतां देख्यो
ना जागै कदी
ना सोवतां देख्यो

क्या खावै अर क्या पीवै है
कुण जाणै कइयां जीवै है
रोटी देस-धरम हैे इण रो
रोटी है भगवान
कह मंगतो थे भल बतळावो
यो भी है इन्सान

</poem>
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