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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
झबळकै प्रीत सूं समदर अणूती आस में
बांधबा कद आवै कोई चुळू रै पास में

लाड सूं निरखै पीणा स्यांप उण नै
पीवै है कोउ सूं उणरो गरल हर सांस में

बो देवता है इण जगत रै वास्तै
आयग्यो आडो किणी रै त्रास में

उणारो खातमो करणो धरम री बात होवैला
लुक्योड़ी सिरजणा लूंठी जिणा रै नास में

बो पूग नै लिखसी ताक पै जीत रा आखर
काटसी कांटां री डांडी मुळकती हास में

</poem>
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