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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थूं
फूटरी घणीं लागै
जद थूं
म्हां सूं
दूर होवै।

थूं
ओज्यूं
फूटरी होवण
म्हां सूं दूर
कद जासी।

</poem>
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