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अकलवान / मनमीत सोनी

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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कणा तो
साम्हीं जा'र सड़क पर
पकडूं थारो हाथ
अर कणा
आगलै चौरावै बैठ'र
देखूं थारी बाट

ईं वास्तै नीं
कै म्हैं थारो भलो चाऊं
हां
ई वास्तै
कै जे लारै छोड़ देतो तन्नैं
तो म्हैं भी
रह ज्यातो लारै।
</poem>
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