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गांव में / मनमीत सोनी

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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
यार चंगू!
वा बात और ही
जद म्हैं गांव में रहतो
अर कहतो
कै च्यार रोटी सूं
इत्ती बड़ी काया नैं के होसी...?

इब म्हैं
सहर में रहणैं लागग्यो हूं
च्यार रोटी खुवा'र
मार'सी के यार...?
</poem>
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