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चांद / मनमीत सोनी

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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आज पूरो देख्यो चांद म्हें
गळी में कोई टाबर
पूरै जोर सूं
उछाळी लागै गिण्डी।
</poem>
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