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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
रामली उण दिन
रोवती आई उण रूंख रै साम्हीं
टळक-टळक पड़ै आंसू
अर हुचक्यां भरीज
याद करै रामजी नै
आंसू बैवै उण रा लगोतार
अर हुचकै ही बा
बारम्बार।
गांव सूं भाज ‘र
आई ही इण रेत रै टीबै माथै
रूंख रै साम्हीं
आपरो दुखडो बतावण नै
भय नै भगावण नै
जीवण री आस ही
रूंख सूं ई उणनै मिलणो हो
जीवण रो नूंवो पाठ
जद-जद
उण साम्हीं आवै अबखायां
रूंख ही उणनै लडावै
जीवण रा केई अरथ
नैछै सूं समझावै।
दुनिया में किणी
नीं दिखायो हेत
उणनै व्हाली लागती
रूंख रै आसै-पासै री रेत।
आज भी
मा चालती रैयी
बा हुयगी साव अेकली
इणी खातर आई रूंख रै साम्हीं
डुसक्यां भर सुणाई आपरी मनगत
अर देखण लागी रूंख नै।
इयां लाग्यो
रूंख फेरयो हुवै
जाणै माथै पर हाथ
कैयो-
‘इण जुग मांय
कुण है किणी रै साथै
अेकलो जीणो पड़सी
जूण नै सीणो पड़सी। ‘
रूंख री आ सीख
भरगी नूंवी हूंस
रामली पाछी भाजी
जीवण रो अरथ समझ आयग्यो
दुख तो उणरै चैरै नै
देखतां ई भागग्यो।

</poem>
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