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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
छोटी होवै
भलां ई
मोटी होवै
दो जूण घर री
रोटी होवै!

घर रो चूल्हो
कदै ई ना भूलो
चेतन चूल्हो
स्यान बणावै
अचेत चूल्हो
स्यान गमावै!

खाली पेट
कुण धणीं
भर्यै पेट
लाख धणी!

रोटी में
राम बसै
रोटी सारु
राम खस्सै
सगती है
रोटी खायां
मुगती है।

आदर बिन
रोटी खाओ
बिरथा थारी
जूण गमाओ
इण रोटी सूं
धूड़ फाकणीं
आच्छी है
बात कथी कोई
साच्ची है।
</poem>
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