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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
उण बड़लै माथै
अबै नीं दीसै चिड़कल्यां
नी दीसै
उण री छियां हेठै बैठा मिनख
हरियाळी तो आवै इज नीं
उण पासी भूल ‘र
केई महीना सूं नीं हुई बिरखा
ताल -तलैया ई हा सूका
कुण सींचै बड़लै नै पाणी
इणी कारण
लोग कैवण लागग्या
अेक नीं
केई -केई अकाळ
अेकै सागै आयग्या।

</poem>
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