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|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
जद तांई
गांव रा घर हा कच्चा
गोबर गारै सूं लीप्योड़ा
तद तांई उणां मांय
मिनख हा पक्का
साव सच्चा
भरोसैजोगा
बगत बदळयो
घर बणग्या पक्का
मारबल अर टाल्यां लागगी
टीवी खातर छतरयां टंगगी
घरां साम्हीं मोटरां रमगी
अबै घर हुयग्या पक्का
पण
मिनख हुयग्या कच्चा
घर कच्चा तो मिनख पक्का
घर पक्का तद मिनख कच्चा !

</poem>
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