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|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

पाणीं री जाणैं
आण अर कांण
थळ रै जळ समेत
मिनख रै माजणैं तकात
परखै पाणीं
म्हारै गांव में।

अळगो आंतरो
चावै पाणीं पीवण रो
राखै पण सांकड़ै
आण रो पाणीं
जिण सारू कटाया
बडेरां सीस अलेखूं
तिरस पीवी
राख्यो पण पाणीं
पाणीं राखण आंख रो
रगत सूं सींची धरा
आज भी पाळै बा हूंस
म्हारो गांव!
</poem>
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