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{{KKRachna
|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
}}
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<poem>
बरस बीतग्या
म्हारी हंसी गमगी
जाणै कुण लेयग्यो
म्हैं ई उणनै नीं सोध्यो
कांई करणो है हंसी रो
जे नीं हंसांला
तो मरां तो कोनी
खाली हंसण सूं जीवां भी कोनी
उण दिन
हंसी
आपै आप साम्हीं आय ‘र ऊभगी
उणनै देखतां ई
आंख्यां सजळ हुयगी
बा बोली -
‘म्हैं इण खातर पाछी आई
क्यूं कै थारी उमर तो गई ।‘
आ कैय ‘र बा चुप हुयगी
म्हनै भळै हंसी आयगी।
</poem>
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बरस बीतग्या
म्हारी हंसी गमगी
जाणै कुण लेयग्यो
म्हैं ई उणनै नीं सोध्यो
कांई करणो है हंसी रो
जे नीं हंसांला
तो मरां तो कोनी
खाली हंसण सूं जीवां भी कोनी
उण दिन
हंसी
आपै आप साम्हीं आय ‘र ऊभगी
उणनै देखतां ई
आंख्यां सजळ हुयगी
बा बोली -
‘म्हैं इण खातर पाछी आई
क्यूं कै थारी उमर तो गई ।‘
आ कैय ‘र बा चुप हुयगी
म्हनै भळै हंसी आयगी।
</poem>