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टाबर - 11 / दीनदयाल शर्मा

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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
टाबर बोल्यौ
आ' साड़ी
मम्मी री नीं
मा री है
सूंघ'र
देखल्यौ भलांईं

म्हूं सोच्यौ
टाबर
कित्ता स्याणां हुवै
नाक नै बरतै
आँख दांईं

अर
आपां
आँख्यां होंतां थकां भी
अणदेखी करद्यां
घणीकरी सी चीज्यां।
</poem>
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