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टाबर-६ / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
टाबर
क्‍यूं नीं खेलै
माटी में

टाबर
क्‍यूं नीं न्हावै
बिरखा में

टाबर
क्‍यूं नीं चलावै
बिरखा रै पाणी में
कागद री नाव

टाबर
कद पकड़सी
तितल्यां

टाबर
कद चला सी
कुर्सी या पिड्डै नै
गाडी दांईं

अेड़ा खेल
क्‍यूं नीं खेलै टाबर
कठीनै गया टाबर ?
</poem>
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