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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
साव काळै
तेळ सूं गळा-गच
म्हारै फाट्योड़ै गाभा में
म्हारा टाबर
ओळख लेवै
रोटी री सौरम।
</poem>
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