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बधतो आंतरो / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
जका अबै गळी में है
सदीव रैवैला
गळी में
बां नैं कोनी मिलै घर
कदैई
क्यूंकै घरां रा बारणां बंद है
अर बधतो ई दीसै आंतरो
गळी अर घर बिचाळै।
</poem>
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