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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
गळी में सोवै
गळी में जागै
गळी में पोवै
गळी में खावै
गळी में बोतलां-मेणियां
चुग'र करै बै
जीविका रो जुगाड़।
गळी बां रो घर है
अर घर अेक सपनो!
</poem>
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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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गळी में सोवै
गळी में जागै
गळी में पोवै
गळी में खावै
गळी में बोतलां-मेणियां
चुग'र करै बै
जीविका रो जुगाड़।
गळी बां रो घर है
अर घर अेक सपनो!
</poem>