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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
जको इन्द्र बण्यो
पैलै दिन
बो ई चौथै दिन
बणग्यो- रावण!
लिछमी बणणियै रै
पांती आयो
सूपनखा रो रोल!
इणींज भांत
मिथिलापति जनक
हड़-हड़ हांस्यो
कुंभकरण रो भेस धार'र!
जीयाजूण दांइ-
आ रोळ-गिदोळ
कींकर हुयगी
रामलीला में?
</poem>
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<poem>
जको इन्द्र बण्यो
पैलै दिन
बो ई चौथै दिन
बणग्यो- रावण!
लिछमी बणणियै रै
पांती आयो
सूपनखा रो रोल!
इणींज भांत
मिथिलापति जनक
हड़-हड़ हांस्यो
कुंभकरण रो भेस धार'र!
जीयाजूण दांइ-
आ रोळ-गिदोळ
कींकर हुयगी
रामलीला में?
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