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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
ओपरै अर अबखै मारग
ओखो है
अेकलो चालणो।

सागै रै सायरै
सोरो कट सकै पैंडो।

चाल!
चार पांवडां ई खरों
कीं तो चाल
म्हारै सागै चाल!
</poem>
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