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दूब / मदन गोपाल लढ़ा

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<poem>
दूब तो दूब हुवै। पाळै प्रीत। धरती नैं बचावणै अर संवारणै सारू होम देवै आखी जूण।
लीली दूब देख्यां ई हुय जावै जीव सोरो। हियै में भर जावै उमाव। छांय-मांय हुय जावै जुगां रो थाकेलो। मा तो ठाकुरजी री पूजा सारू नितूगै चार तामणा दूब लावै ई लावै गडियै में।
भोरांनभोर लीली दूब माथै फि रणो आंख्यां सारू रामबाण बतावै। रोज झांझरकै उठ'र जे कोई उभाणै पगां घूमै लीली दूब माथै तो चश्मै री कोनी रैवै दरकार। सीबीडी* सूं बचणै सारू तो अचूक दलाज ई मानो पगथळ्यांं माथै लीली दूब रो परस।
भखावटै आप देख सको कुदरत री कला। आखी रात चांदणी सागै हथाई करती दूब धंवर री बूंदां नैं कित्तै लाड-कोड सूं सांभै कांपतै हाथां। दिन ऊग्यां सुरजी री किरणां नैं सूंपै आ हेमाणी।
जद-कद तपती अर लूवां सूं सिकणै लाग जावै धरती। काळ-दुकाळ में सूक जावै मिनख री आंख्यां रो पाणी तो पछै दूब री कांई है मजाल। इण अबखै बगत में तिरसाई धरती माथै पीळी पड़ जावै दूब पण हारै कोनी। काळै बादळां री उडीक में काढ देवै माड़ो बगत। बिरखा रो मतळब उच्छब हुवै दूब सारू। पाणी री टपाटप सूं दूब रै लीलै रंग सागै मनभावणी सौरम सूं सैचन्नण हुय जावै आखी धरती। महाकवि कैयो, इतियास फ गत बड़ रो कोनी हुवै, दूब रो पण हुवै। कित्ती खरी बात है आ। पण खरी बात नैं मानै कुण इण नाजोगै बगत में। दूब सूं ई ईसको राखै लोग। इत्ती खार कै दूब माथै इण भांत फि रै कै जियां पगां सूं कुचळ'र ई लेयसी जक। दूब बापड़ी! कठै जाणै अैड़ा छळ। बा तो आप सरीसा मानै सगळा नैं।
भाजान्हासी रै इण जुग में अबखो है रोज बाग में जावणो। जे आपरी आंख्यां में पळै कोई हरियळ सपनो तो घर री ई कोई कूंट में राखो चार हाथ जगैं दूब सारू।


*सीबीडी: कम्प्यूटर बेस्ड डिजीज
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