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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
हम ख़ादिमे गुलशन जब ठहरे हमें फ़िक्रे गुलिस्ताँ क्या करना
है ख़ुद ही मुनव्वर सारा चमन हमें फिक्रे चिराँगा क्या करना।

जब बच्चे हमारे छोटे थे मशवरा हमारा सुनते थे,
अब उनसे उम्मीदें क्या करना, अब उनको परीशाँ क्या करना।

हम क़ैद हैं धर के कोने में याँ साँस भी लेना मुश्किल है,
जो मौत से बदतर जीवन दे हमें ऐसा निगहवाँ क्या करना।

हम तो मदमस्त कबीरा हैं, हमें राह पे अपनी चलने दे,
जो प्रेम का पाठ पढ़ा न सकें हमें ऐसे फ़की़हाँ क्या करना।
</poem>
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