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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
माँ हुई खुश तो मेरी तारीफ करने लग गयी।
भूख जब उसको लगी मुझको परसने लग गयी।
फिर खुशी पिचके हुए गालों पे माँ के देखिये,
फिर खबर बेटे की अच्छी सुन के उड़ने लग गयी।
माँ हज़ारों दर्द अपने हँस के सह लेती मगर,
चुभ गया काँटा मुझे तो वो तड़पने लग गयी।
जब से झगड़ा बढ़ गया हम भाइयों के बीच में,
तब से माँ की खाट अब आँगन में बिछने लग गयी।
रात भर सोता है घर, आराम से रहते हैं सब,
एक बूढ़ी आँख जो पहरे पे रहने लग गयी।
अब दिखायी भी न दे, माँ को सुनायी भी न दे,
पाँव छूते ही मगर ममता उमड़ने लग गयी।
माँ कभी मरती नहीं, उसकी दुआ चुकती नहीं,
जब चली ठंडी हवा खुशबू बिखरने लग गयी।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
माँ हुई खुश तो मेरी तारीफ करने लग गयी।
भूख जब उसको लगी मुझको परसने लग गयी।
फिर खुशी पिचके हुए गालों पे माँ के देखिये,
फिर खबर बेटे की अच्छी सुन के उड़ने लग गयी।
माँ हज़ारों दर्द अपने हँस के सह लेती मगर,
चुभ गया काँटा मुझे तो वो तड़पने लग गयी।
जब से झगड़ा बढ़ गया हम भाइयों के बीच में,
तब से माँ की खाट अब आँगन में बिछने लग गयी।
रात भर सोता है घर, आराम से रहते हैं सब,
एक बूढ़ी आँख जो पहरे पे रहने लग गयी।
अब दिखायी भी न दे, माँ को सुनायी भी न दे,
पाँव छूते ही मगर ममता उमड़ने लग गयी।
माँ कभी मरती नहीं, उसकी दुआ चुकती नहीं,
जब चली ठंडी हवा खुशबू बिखरने लग गयी।
</poem>