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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अब तो किसी भी बात पर चौंकता कोई नहीं।
गाँव में निकला है अजगर चौंकता कोई नहीं।
लाश जंगल में मिली मासूम लडकी की पड़ी,
अफ़सोस है सबको मगर चौंकता कोई नहीं।
रोज़ अखबारों में छपती है ख़बर छपती रहे,
अब घोटालों की ख़बर पर चौंकता कोई नहीं।
गंदगी के ढेर पर आराम से बैठे हैं सब,
बीमार है पूरा शहर चौंकता कोई नहीं।
पत्तियाँ झुलसीं सुलग कर रह गये हैं फूल तक,
है सामने जलता शज़र चौंकता कोई नहीं।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
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अब तो किसी भी बात पर चौंकता कोई नहीं।
गाँव में निकला है अजगर चौंकता कोई नहीं।
लाश जंगल में मिली मासूम लडकी की पड़ी,
अफ़सोस है सबको मगर चौंकता कोई नहीं।
रोज़ अखबारों में छपती है ख़बर छपती रहे,
अब घोटालों की ख़बर पर चौंकता कोई नहीं।
गंदगी के ढेर पर आराम से बैठे हैं सब,
बीमार है पूरा शहर चौंकता कोई नहीं।
पत्तियाँ झुलसीं सुलग कर रह गये हैं फूल तक,
है सामने जलता शज़र चौंकता कोई नहीं।
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