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Kavita Kosh से
<poem>
नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिये
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया अब ख़ाक उड़ाऊँ मैं बाहर जाऊँ किस के लिये
जिस धूप की दिल को ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बुझती बलती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये
वो शहर में था तो उस के लिये औरों से मिलना पड़ता था