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|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}<poem>तेरे पास और नसीब में जो नहीं था<br>और थे जो पत्थर तोड़ने वाले दिन उस सबके बाद<br>इस वक़्त तेरे बदन में धरती की हलचल है<br>घास की ज़मीन पर लेटी<br>तू एक भरी पूरी औरत आंखों को मींच कर<br>काया को चट्टान क्यों बना रही है<br><br>
बाई तुझे दरद लेना हैं<br>जिन्दगी भर पहाड़ ढोए तूने<br>मुश्किल नहीं है तेरे लिए दरद लेना<br><br>
जल्दी कर होश में आ वरना उसके सिर पर जोर पड़ेगा<br>पता नहीं कितनी देर बाद रोए या ना भी रोए<br>फटी आंख से मत देख<br>भूल जा जोर जबरदस्ती की रात<br>अँधेरे के हमले को भूल जा बाई<br><br>
याद कर खेत और पानी का रिश्ता<br>सब कुछ सहते रहने के बाद भी<br>कितना दरद लेती है धरती<br>किस किस हिस्से में कहॉ कहॉ<br>तभी तो जनम लेती हैं फसलें <br>नहीं लेती तो सूख जाती सारी हरियाली<br>कोयला हो जाते जंगल<br>पत्थर हो जाता कोख तक का पानी<br><br>
याद मत कर अपने दुखों को<br>आने को बेचैन है धरती पर जीव<br>आकाश पाताल में भी अट नहीं सकता<br>इतना है औरत जात का दुःख<br>धरती का सारा पानी भी<br>धो नहीं सकता<br>इतने हैं आंसुओं के सूखे धब्बे<br><br>
सीता ने कहा था - फट जा धरती<br>ना जाने कब से चल रही है ये कहानी<br>फिर भी रुकी नहीं है दुनिया<br>बाई दरद ले!<br>सुन बहते पानी की आवाज़<br>हाँ ! ऐसे ही देख ऊपर हरी पत्तियां<br>सुन ले उसके रोने की आवाज़<br>जो अभी होने को है<br>जिंदा हो जायेगी तेरी देह<br>झरने लगेगा दूध दो नन्हें होंठों के लिए<br><br>
बाई! दरद ले</poem>