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रग-रग में कंटक-सी चुभती श्वास लिए भटकूँ।
अपने काँधे पर मैं अपनी लाश लिए भटकूँ।
लोगों की हमदर्दी का मॅुहताज़ हो गया हूँ,
सूनी-सूनी आँखों में आकाश लिए भटकूँ।
जश्न मनाओ तुम अपना मैं दर्द सहूँ अपना,
सारे रिश्तों-नातों से अवकाश लिए भटकूँ।
मैंने मांगा इक छोटा–सा मीठा–सा झरना,
ऐसा खारा मिला समन्दर प्यास लिए भटकूँ।
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