भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये।गये
ज़िंदगी के बिंब धुँघले हो गये।
दृष्टि सोने और चाँदी की जहाँ,
भावना के मोल पहले हो गये।
उस जगह से मिट गयीं अनुभूतियाँ,
जिस जगह के चाम उजले हो गये।
बादलों को जो चले थे सोखने,
पोखरों की भाँति छिछले हो गये।
कौन पहचानेगा मुझको गाँव में,
इक ज़माना घर से निकले हो गये।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits