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लाख काँटे हैं यहाँ पर फूल हैं, कलियाँ भी हैं।हैं
ज़िंदगी है बस इसी से ग़म भी हैं, खुशियाँ भी हैं।
क्या गलत है, क्या सही वो सब पता मुझको मगर,
आदमी हूँ इसलिए मुझ में बहुत कमियाँ भी हैं।
देश के नक्शे में तो दिखती है बस पक्की सड़क,
देश में ही, पर हमारे गाँव की गलियाँ भी हैं।
क्या पता कितना अँधेरा और होता दोस्तो,
है गनीमत इस शहर में मोम की गुड़ि़याँ भी है।
आपको इस बात का भी फख्र होना चाहिए,
सिर्फ आँखें ही नहीं हैं अश्रु की लड़ियाँ भी हैं।
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