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|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
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<poem>
कोई साजिश
कोई इल्जाम
चलो हुआ कुछ नाम
पहले प्रेम की चिट्ठियां
आग हो जाती हैं
प्रेम के लिए

प्रगति की बात करती कविताएं
कवि का पिछड़ापन दूर नहीं करती
रोटी लिखने से पेट नहीं भरता

तमाम साजिशों के बाद
रंजिशों और दर्द के बाद
प्रेम का बचा रह जाना
मन की जीवटता है

प्रेम की अपनी जिजीविषा है
और अकाट्य है यह भी
कि प्राथमिकताएं तय होती हैं

प्रेम नहीं
प्रेम लिखते ही
शब्द गुनाहगार हो जाते हैं इन दिनों।

</poem>
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