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इज़्ज़तपुरम्-10 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
सूरज उगे
ताकि
शुरू
नया दिन हो

सूरज उगे
ताकि
भींगी हुई
घास
वस्त्र ले
सुखा

मुग्ध कारा से
मुक्त भ्रमर
ताजगी ले
धूप में
और मुदित पुष्प
पुनर्विकसित हो

सूरज उगे
ताकि
कृषक
खेतों की ओर
बढ़ें और
झुण्ड पंछियों के
चारे की
तलाश में

सूरज उगे
ताकि
सो रहे
यात्री जगें
और शौच से
निवृत्त
हों
कुल्ला करें
चाय पियें
समोसे खायें
कुल्हड़ और
दोने फेंकें

झाड़ू - बहारू के
कामकाज पसरें

सूरज उगे
ताकि
एक रंग का
उजाला हो
अमीर के घर
ग़रीब के घर
</poem>
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