भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग भरी नदी / रामनरेश पाठक

317 bytes added, 09:33, 9 सितम्बर 2017
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरे चारों ओर गीत पलाशों की जवान नदी बह रही देह में चिनगी फूली है सबेरे सबेरे मत जगाओ मुझे आम और महुए का दर्द धरती पर लोट रहा है तुम्हारे कुन्तलों से मधु की बूँदें टपक रही हैं कच्ची कचनार के पोर पोर में तृष्णा जग गयी है मेरे रक्त की ताँ पंचम पर कोयल ने दारु पी लिया है देखो, बाहर मत उठाओ मुझे निकलो आओ मेरे पास खुले कुंतल, नग्न तन, स्वस्थ मन बाहों के कुञ्ज में समां जाओ फागुन आ गया है पछवा भ रही है मेरे चारों ओर गीत की रंग भरी जवान नदी बह रही है !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits