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{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=शहर छोड़ते हुए / रामनरेश पाठक
}}
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<poem>
आँचल संभाल कर जुड़ा बांधो
देहरी, ड्योढ़ी विकल खड़ी न रहो
नदी रंगों से भरी है
(वैकुण्ठ की राह खो गयी है इस नदी में)
मुझे मत उकसाओ
पछवा बह रही है
</poem>
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|संग्रह=शहर छोड़ते हुए / रामनरेश पाठक
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आँचल संभाल कर जुड़ा बांधो
देहरी, ड्योढ़ी विकल खड़ी न रहो
नदी रंगों से भरी है
(वैकुण्ठ की राह खो गयी है इस नदी में)
मुझे मत उकसाओ
पछवा बह रही है
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