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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बदलते
वक्त की
जॅभाई में
उपजे
नये कीड़े
रंगीन रिश्ते
साधने में
बेहद पराधुनिक
उतावले
तीव्रगामी
विगत में
घर से
समाज से
बाहर सुदूर
तयशुदा जगह पर
लेाग उड़ेलते
गंदगी
अब
कहीं थूक दें
दुष्कृती
खंखारकर
अब पूरी गंदगी
पूरे में फैल रही
</poem>
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|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
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बदलते
वक्त की
जॅभाई में
उपजे
नये कीड़े
रंगीन रिश्ते
साधने में
बेहद पराधुनिक
उतावले
तीव्रगामी
विगत में
घर से
समाज से
बाहर सुदूर
तयशुदा जगह पर
लेाग उड़ेलते
गंदगी
अब
कहीं थूक दें
दुष्कृती
खंखारकर
अब पूरी गंदगी
पूरे में फैल रही
</poem>