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एक पूजा फिर / दिनेश श्रीवास्तव

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<poem>
पूजा आई
और सारा शहर जगमगा उठा
लगा जैसे किसी ने
उसके कोढ़ से भरे घावों पर पेंट कर दिया
और बिवाई से फटे पावों पर
साटन का जुर्राब चढ़ा दिया.
पर ओ शहर
तुझे मालूम है न
कि यह मुलम्मा
बस नवमी तक है.
</poem>
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