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|रचनाकार=दीपिका केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कविताएं पढ़ना ये ठीक वैसा ही है
जैसा कि रसोइ में माँ का कोई नया फिल्मी गीत गुनगुना
ठीक वैसा ही जैसा कि
सारे खर्चो के बावजूद
पिता का अपने वेतन में से कुछ पैसे बचाकर
अपने बच्चों के लिए जमा करना
ठीक वैसा ही जैसा कि
सोलह के बाद भाई की उम्र साल नहीं दिन के हिसाब से बढ़ना
ठीक वैसा ही जैसा कि
बहन के स्पर्श में माँ का स्पर्श ठहर जाना
ठीक वैसा ही जैसा कि
प्रेमी का बिन ब्याहे पति हो जाना
कविताएं पढ़ना ठीक वैसा ही तो है
जैसा कि
एक औरत का पूरी उम्र एक ख्वाब पाले रखना कि
एक दिन उसका पति उसका प्रेमी बन जाएगा !
</poem>
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कविताएं पढ़ना ये ठीक वैसा ही है
जैसा कि रसोइ में माँ का कोई नया फिल्मी गीत गुनगुना
ठीक वैसा ही जैसा कि
सारे खर्चो के बावजूद
पिता का अपने वेतन में से कुछ पैसे बचाकर
अपने बच्चों के लिए जमा करना
ठीक वैसा ही जैसा कि
सोलह के बाद भाई की उम्र साल नहीं दिन के हिसाब से बढ़ना
ठीक वैसा ही जैसा कि
बहन के स्पर्श में माँ का स्पर्श ठहर जाना
ठीक वैसा ही जैसा कि
प्रेमी का बिन ब्याहे पति हो जाना
कविताएं पढ़ना ठीक वैसा ही तो है
जैसा कि
एक औरत का पूरी उम्र एक ख्वाब पाले रखना कि
एक दिन उसका पति उसका प्रेमी बन जाएगा !
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