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दमड़ी / ब्रजमोहन

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चमड़ी बेशक जाए रे भैया, दमड़ी लियो बचाए
चमड़ी तो फिर आ जाएगी, दमड़ी आए न आए
रे भैया दमड़ी का ही राज दमड़ी के सर पे ही ताज दुनिया दमड़ी की मोहताज... हो...
सारा ख़ून-ख़राबा लूट और मारकाट के क़िस्से
दमड़ी के लोभी करवाते खाते सबके हिस्से
राम के नाम का चक्कर कोई दमड़ी न ले जाए
रे भैया...
ऊँच-नीच औ’ जात-पात औ’ हिन्दू-मुस्लिम दंगे
ज़ालिम दमड़ी के चेहरे ही हैं, ये रंग-बिरंगे
मरे हज़ारों-लाखों, चाहे देश भाड़ में जाए
रे भैया...
झण्डे-कुरते-टोपी-कुरसी-लाठी-गोली-फ़ौज
गंगू तेली पर शासन दमड़ी का राजा भोज
दमड़ी का रथ चले ख़ून की सड़कों पर इतराय
रे भैया...
</poem>
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